होशियार था वो...
पर वो पढाई कर न सका..
हाय गरीबी के चक्कर में
पूरे आरमान कर न सका...
हँसते-इठलाते साथ में थे
वो दोनों बचपन के
खेलों में...
वो गरीब था झोपडी का..
वो रहती थी महलों में....
वो आज डाक्टर क्लिनिक में
वो खेत जोतता हल से था
वो स्नेह भुलाने वाली थी
वो अनजान इस चल से था...
जब शादी कर
उसको भूल रही थी...
तब उसके मन मरुस्थल के
उसर में कास फूल रही थी.....
सुधीर मौर्य 'सुधीर'
'हो न हो' से....
बहुत पसन्द आया
ReplyDeleteहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
ReplyDelete