अभी तक महफूज़ हैं रखे
फाइलों में वो मेरी सब
मेरे हर एक ख़त का
दिया हुआ जवाब तेरा...
महकती डायरी मेरी
अब तलक अलमारी में रखी
जिसके पन्नों में रखा था
दिया हुआ गुलाब तेरा...
मेरे आँखों के आगे ही
तेरे सुर्ख पहिरन थे
अभी तक याद है मुझको
दूर जाना शिताब तेरा...
सबब ठुकराने का मुझको
तलाशा हर जगह मैंने
खुश्की में, दरिया में,
बातिल में, हकीक़त में.
महावर की जगह तुने
सुनहरी पायलें मांगी
कहाँ हासिल तुझे होता
ये सब मेरी मुहब्बत में.
मैंने अपना तुझे माना
तुने सपना मुझे समझा
बस इतना सा फर्क था
तेरी मेरी मुहब्बत में....
'हो न हो' से...
सुधीर मौर्य 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
209869
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