उसे सरोकार नहीं होता
कश्मीर में बेघर हुए
हिन्दुओ के दर्द से
वो तो बस छटपटाती है
अफज़ल के नाम पर
वो कलम है एक वामपंथी
की।
हज़ार सालो में
मज़हब के नाम पर
लाखो मंदिरो का
गिराये जाना
जायज है उसकी नज़र में
और नायजायज है
राममंदिर का बनाये
जाना
वो एक वामपंथी की कलम
है।
सुख जाती है
उसके पेट की स्याही
पाकिस्तान और बांग्लादेश
में
हो रहे अल्पसंख्यको
के अत्याचार
और उनकी लड़कियों के
बलात्कार के नाम पर
और लिखती है लाल सलाम
भारत के खुशहाल अल्पसंखको
का
छद्म दर्द गढ़ कर।
वो कलम है एक वामपंथी
की।
वो कलम है एक वामपंथी
की।
-- सुधीर मौर्य
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9-4-15 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1943 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
ji sir, bahut aabhar aapka...
Deleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeletebahut dhanywad rashmi ji..
Deleteएक अलग और सही सोच . "झूठा हो या सच्चा मुद्दा ,हम तो सिर्फ विरोध करेंगे "--एक वामपंथी की यही विचारधारा होती है . अधिकांश बुद्धजीवी कहलाने वाले भी खुद को वामपंथी कहलाना पसंद करते हैं .बहुत ही बढ़िया कविता है .
ReplyDeleteji mem, samarthan ke liye bahut dhanywad...
Deleteएक अलग नज़रिया
ReplyDeleteआभार ओंकार जी।
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