Saturday, 4 April 2015

इस्लामी आतंकवाद का खतरा

सेमेटिक धर्मो में जहाँ यीशु ने प्रभू और धर्म के नाम पर शांति का सन्देश दिया। वहीँ मुहम्मद ने इस्लाम और क़ुरान के नाम पर सारे संसार को ऐसे फसाद में झोंक दिया जहा रोज़ मजहब के नाम पर कत्लेआम का खेल खेला जा रहा है। अभी पाकिस्तान में बच्चो की चीखे शांत भी हुई थी कि केन्या में १५० बच्चो की जाने अल शबाब नाम के अातंकवादी संगठन ने ले ली। इस संगठन ने मज़हब के नाम पे १५० ईसाई बच्चो को मार दिया।
इस्लामी आतंकवाद से इस्लाम के  अतिरिक्त अन्य सेमेटिक जातियों (ईसाई और यहूदी ) को वापस क्रूसेड के झंडे के नीचे आना होगा। नहीं तो इस्लाम मज़हब के नाम पर उनकी नस्लों को यूँ ही ख़त्म करता रहेगा।
गैर सेमेटिक जातियां (हिन्दू, पारसी) आदि को अपने धर्म और नस्लों की रक्षा के लिए धर्मयुद्ध का ध्वज उठाना ही पड़ेगा।
कुछ भी कर लो इस्लामिक चरमपंथी संगठन अब शांति की भाषा सुनने वाले नहीं। इनमे उनकी गलती भी नहीं उनकी मज़हबी शिक्षा, शांति नहीं बल्कि मार काट पर आधारित है।  एक कट्टर मजहबी मुस्लमान कभी भी शांति की राह पर चल सकता है।  और ही उस पर कभी कोई शांति का उपदेश असर डाल सकता है।
अब अन्य धर्म को सोचना होगा कि वो किस तरह बढ़  रहे इस्लामिक कट्टरवाद पर नकेल कसे।  विकल्प शायद गोली का उत्तर गोली से देने का है
--सुधीर   मौर्य             

2 comments:

  1. हनुमान जयन्ती की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल रविवार (05-04-2015) को "प्रकृति के रंग-मनुहार वाले दिन" { चर्चा - 1938 } पर भी होगी!
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    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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