Thursday, 3 December 2015

इच्छापूर्ति - सुधीर मौर्य


मैं जब भी निकलता
उस गली से अपने बचपन के दिनों में
तो मुझे लगता
इस गली के किनारे बानी ईमारत में
जरूर आबाद होगा
कोई होटल, भोजनालय
या फिर कालेज की कोई मैस
तभी तो पड़े रहते है वहां पे
बैंगन और बैंगन के कुछ टुकड़े

जब मैं कुछ बड़ा हुआ
तो ये सोच कर थोड़ा हैरान हुआ था
क्या ये जगह के लोग
बैंगन के आलावा नहीं कहते कोई सब्जी
क्योंकि मेरी आँखों ने
कभी वहां बैंगन के आलावा
कभी कोई सब्जी नहीं देखी

जब मैं थोड़ा ओर बड़ा हुआ, तो  
मुझे मालूम पड़ा
उस ईमारत में कोई होटल या भोजनालय नहीं है
हाँ उसमे एक मैस जरूर विद्यमान है
जिसमे खाना खाती है
ईमारत में रहने वाली डिग्री कालेज की लडकिया
और उस मैस का वार्डन
परेशान रहता है उन लड़कियों से
जो अक्सर उठा ले जाती चुपके से
सब्जी के लिए लाये गए
बैंगनों को अपनी इच्छापूर्ति के लिए।

--सुधीर मौर्य

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