नहीं मैं नहीं चाहता
तुम मेरे लिये
संयोग और वियोग की नज़्में लिखो
नही मैं नहीं चाहता
तुम अपने मन के किसी कोने में
मुझे धारण करके
मेरी इबादत करो
नहीं मे नहीं चाहता
मुझे हर जन्म में
तुम अपना देवता मान लो
बस प्रिये !
मैं चाहता हूँ
तुम मेरे साथ चलो
उस राह पे
जिस राह पे
तेरे - मेरे नाम के साथ
लिखा हो प्रेम - परिंदे।
--सुधीर
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.12.2015) को " लक्ष्य ही जीवन का प्राण है" (चर्चा -2187) पर लिंक की गयी है कृपया पधारे। वहाँ आपका स्वागत है, सादर धन्यवाद।
ReplyDeleteधन्यवाद सर।
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