दिसम्बर के महीने में
वो मिली थी उस धूप के बादल से
दिन और तारीख उसे अब याद नहीं
सुबह और शाम की
ठिठुरती ठण्ड में
कितना प्यारा लगता था
उसे धूप का साथ
और एक सर्द शाम में
सो गई थी वो
ओढ़ कर धूप की चादर
और अगली सुबह
महसूस किया था उसने
अपनी देह के भीतर
धूप के एक नर्म टुकड़े को
और जब वो खुश होकर
बताना चाहती थी
अपनी देह का ये परिवर्तन
चूम कर धूप का माथा
तो उसे पता चला था
क़ि धूप का वो बादल
आवारा बादल था
जिसे ओढ़ा करती थी वो
खुद को ज़माने की ठण्ड से
बचाने के लिए
वो दिसम्बर की
एक सर्द शाम थी
एक उदास शाम
जिसका दिन, तारीख और साल
अब वो कभी भूल नहीं पायेगी।
--सुधीर
बहुत खूब
ReplyDeletedhanywad sir..
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