बचपन मे
कुछ लड़कियाँ तितली होती है
कुछ चिड़ियाँ
कुछ पारियां
और कुछ लड़कियां होती है
सिरों की बोझ
बचपन में
कुछ लड़कियों के नाम होते है
गुड़िया, बैबी और एंजेल
और कुछ लड़कियां
पुकारी जाती है
नासपीटी और कलमुहिं कहकर
बचपन में
कुछ लड़कियां स्कूल जाती है
कुछ सीखती हैं अभिनय
नृत्य और वादन
और कुछ लड़कियाँ जाती हैं खेतों पर
बड़े लोगो के घरो में
करती हैं हाड़तोड़ मेहनत
बचपन में कुछ लड़कियां
सोती है नरम मुलायम बिस्तरों पे
ओढ़ती हैं ढाका का मलमल
और कुछ लड़कियां
बिछती हैं चादर की जगह
ओढ़ती हैं अपने बिखरे बचपन का कफ़न
कुछ लड़कियां
बचपन में खेलती है गुड़ियों और टैडीबेयर से
कुछ लडकिया बचपन में
लड़कियां नहीं रहती
बन जाती हैं औरत
ढोती है जीवन भर किसी का गुनाह
कोख से लेकर गोद तक
और रह जाती है स्वप्नलोक की कहानी बनकर।
--सुधीर मौर्य
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31-12-2015 को चर्चा मंच पर अलविदा - 2015 { चर्चा - 2207 } में दिया जाएगा । नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ
ReplyDeleteधन्यवाद
धन्यवाद सर।
Deleteघोर सामाजिक बिडम्बना है ...मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteधन्यवाद कविता जी।
Deleteबेहतरीन रचना और उम्दा प्रस्तुति....आपको सपरिवार नववर्ष की शुभकामनाएं...HAPPY NEW YEAR 2016...
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धन्यवाद सर। आपको भी नूतन वर्ष की शुभकामनाये।
Deleteसही चित्रण, समाज में लडकियों की स्थिति का। मर्मस्पर्शी।
ReplyDeleteji asha ji bahut bahut aabhar..
Deleteबहुत आभार।
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