इन दिनों
पलाश सा खिला है
चेहरा उसका...
कोयल सी कुहक है
होठों पे उसके...
झील सी आँखें करती हैं
अठखेलियाँ उसकी...
खिलने लगी है
चंद्रिमा पूनम की
गालों में उसके...
हिरन सी लचक है
चाल में उसकी...
लगता है जेसे
अवतरित हुआ है मधुमास
शरीर में उसके...
हो न हो...
चड़ने लगा है उसपे
प्रीत का रंग किसी-का इन दिनों.. .(कविता संग्रह 'हो न हो' से, जो युगवांषिका के २०१२ के वार्षिकांक में भी प्रकाशित)
--सुधीर मौर्य
क्या बात है आद्रणीय...
ReplyDeleteजिसने इसे पत्थर बनाया...
dhanywad..
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