Tuesday, 12 November 2013

क्यूँ की मै खराब लड़की नहीं (कहानी) - सुधीर मौर्य

उस दिन जब मै फैक्ट्री जाने को तैयार हो रहा था, तभी मकान मालिक ने मुझे आवाज़ दी। जब मै ऊपर के पोर्शन में ड्राईंग रूम में गया तो फ़ोन से अलग टेबल पर रिसीवर मेरा इंतज़ार कर रहा था।
रिसीवर को लगाकर मेरे हैल्लो बोलते ही, उधर से तुम तुरंत बोली हैल्लो। शायद फ़ोन पर तुम मेरा इंतज़ार कर रही थी। ये मुझे बाद में पता चला तुमने पी सी ओ से फ़ोन किया था, और तुम्हारे पास सिक्के कम थे। यही वजह थी जो तुम उस दिन मुझसे जल्दी-जल्दी बात कर रही थी।
पुरे दो महीने बाद तुमने मुझसे कांटेक्ट किया था, शायद तुम्हे मेरी याद नहीं आई थी पर मैंने इन गुजरे साठ दिन और इतनी ही रातें हर वक़्त तुम्हे ही याद करता रहा था।
आज फ़ोन पर तुमने मुझे मिलने को बुलाया था, पहले तो दिल किया मना कर दूँ पर बाद में मैंने हाँ कर दी। क्या करूँ तुमसे बेइंतिहा प्यार जो किया मैंने। मना न कर सका। फ़ोन रखते हुए तुमने कहा कोई विशेष है जिसे तुम मुझे मिलकर बताना चाहती हो।
ऑफिस में छुट्टी के लिए एक फ़ोन करके मै चल पड़ा तुमसे मिलने के लिए, स्वरुप नगर की तरफ जहाँ तुम डॉक्टर से मिलने के बहाने आ रही थी।
ऑटो में बैठते ही मेरी आँखों के आगे दो महीने पहले के द्रश्य नाच उठे जब हम कल्यानपुर के पास बगिया क्रासिंग पर मिले थे। वो द्रश्य याद आते ही मेरी आँखे बंद हो गयी। तुम उस दिन मुझसे अकेले मिलने वाली थी पर जब मै पहुंचा तो तुम्हारे साथ संदीप था। वही संदीप जिसे लेकर हम कई बार झगड़ चुके थे, और हर बार तुमने यही कहा तुम्हारा संदीप से कोई सम्बन्ध नहीं।
उन्ही द्रश्यों में उलझा मै स्वरुप नगर पहुँच गया था, तुम अब तक ना आई थी। सोचा शायद कोई और मिल ग्याहोगा और तुम उसके साथ कंही और चली गयी होगी।मै अभी ये सोच ही रहा था की मैंने तुम्हे ऑटो से उतरते देखा। साथ में तुम्हारी छोटी बहन
भी थी।
उस दिन डॉक्टर के यहाँ रिसेप्शन में बैठ कर तुमने मुझे ये कहते हुए की तुमपर पहला हुक मेरा है, मुझे अपनी शादी होने कि खबर दी। आँखे बंद करके मैंने ये सख्त खबर अपने दिल में जब्त कर ली। हमारे बीच ज्यादा बातें न हुई अब बात करने के लिए बचा ही क्या था। कुछ ही दिनों में तुम अधिक्रत  रूप से गैर होने वाली थी।
चलते वक़्त तुमने एक ख़त मेरे हाथ में रख दिया- बोली घर जा के पढ़ लेना। मैंने भी उसे चुपचाप जेब के हवाले कर दिया। तुम चली गयी। जाते वक़्त मैंने तुम्हारी आँखों में डबडबाते आंसू देखे। और उन्हें देख कर मेरे होंठो से दुआ निकली 'सुमन' हमेशा खुस रहो।
तुमसे मुलाकात के बाद ऑफिस जाने का तो सवाल ही नहीं उठता था। रस्ते में वाइन शॉप से रॉयल स्टैग की एक बोतल लेकर मै अपने रूम पर पहुँच गया।
पहले तो मै हरगिज नहीं पीता था, पर वजह तो तुम्ही हो मेरे पीने की, पैग बनाने के साथ ही मैंने युम्हारे ख़त की तहे खोल दी। शराब के पहले घूंट के साथ मैंने तुम्हारा ख़त पढना चालू किया।
प्रिय सुधाकर !
            आज अगर तुमसे मिलने आये तो ये ख़त मै तुम्हे दे पाऊँगी, अगर नहीं है तो मुझसे इसे पढना पड़ेगा। क्यूँ की मै इसे अपने साथ नहीं रख सकती, आखिर अब मेरी शादी तय हो गयी है। और आप से ज्यादा कौन जान सकता है की मै ख़राब लड़की नहीं।
हाँ मै जानती हूँ सुधाकर तुम बहुत दुखी हो तुम्हारी व्यथा मै समझ सकती हूँ, पर मै क्या करूं अपने छोटे भाई-बहन के खातिर मुझे ये शादी करनी पड़ेगी। बस ये समझ लो मेरे लिए ये शादी नहीं एक समझौता है, जो मुझे करना पड़ेगा।
सुधाकर मुझे लेकर तुम्हारे कई सवाल रहे है, मै चाहती हूँ जिनके जवाब आज दे दिए जाये, जिससे तुम मुझे गलत न समझो।
- हां ये सच है सुधाकर मेरी ज़िन्दगी में तुम तब आये जब मेरा बचपन मेरे साथ था। यकीन  रखो उससे पहले किसी ने भी मेरी ज़िन्दगी में दस्तक नहीं दी थी। कोई दस्तक दे भी कैसे सकता था। कुल मिला कर तेरह साल की तो उम्र थी मेरी। तुम तो सत्तरह से ज्यादा न थे। तुम हाँ तुम सुधाकर, मै जहाँ जाती तुम् वहां पहुँच जाते। पता नहीं कैसे, मै कहाँ हूँ तुम जान लेते थे। पर मै ये आज तक न जान पाई तुम ये सब कैसे जानते थे। मै भी तो हर जगह तुम्हे तलाशती थी और मेरी आँखों को सुकून तभी मिलता जब वो तुम्हे निहार लेती।
मै मन ही मन तुम्हे प्यार करने लगी। पर तुमने मुझे प्रपोज करने में पुरे दो साल ले लिए। और तब तक मै गाँव से हाई स्कूल पास करके इण्टरमीडीयट में एडमिशन ले चुकी थी। सच जानो सुधाकर जिस दिन तुमने मुझे प्रपोज किया मुझे यूँ लगा मै पंख  लगाके आस्मां में उड़ने लगी हूँ तुम भी तो कितने खुश थे उस दिन।
मैंने तुमसे कितना कहा सुधाकर यहाँ कानपुर से इंजीनियरिंग करो पर तुमने कानपुर में अच्छी ट्रैड न मिलने का बहाना करके लखनऊ में एडमिशन ले लिया। काश तुमने मेरी बात मणि होती सुधाकर। काश तुम लखनऊ न गए होते सुधाकर। काश तुम कानपुर में पढते सुधाकर। तो शायद मुझे ये लेटर लिखने की जरुरत नहीं पड़ती।
पर होनी को कुछ और मंजूर था। मै तो सिर्फ तुम्हे प्यार करती थी। पर न जाने कहाँ से हमरे बीच संदीप आ गया। उससे मेरी दोस्ती कब हुई मै जान ही न पाई।
तुमने मुझे एक दिन कहा था की सुमन मुझे लगता है की तुम दो नावो में सवार हो। सच पूछो सुधाकर तो मै सिर्फ एक नाव पर सवार थी। पर लोगों ने मुझे दो नावो में सवार कर दिया।
संदीप वो हमारे घर के सामने रहने आ गया था। हमारी बात-चीत, हमारी दोस्ती में तब्दील हो गयी। उसने मुझे मेरी किताब में ख़त रख के प्रपोज किया मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया। तुम तो जानते हो मै ख़राब लड़की नहीं।
पर संदीप मुझे लगातार मिलता रहा, कभी मेरे घर आ जाता, कभी कॉलेज के सामने तो कभी मार्केट में। और फिर उस दिन जब मै  नहा के अपने बाल संवार रही थी तो पीछे से आ कर उसने मुझे अपनी बांहों में भर लिया। उस दिन जब उसने मुझे किस किया तो मैंने भी उसे किस करके प्यार की स्वीक्रति दे दी।
उस रात मै तुम्हे याद करके बहुत रोई सुधाकर। शायद ये तुम्हारे साथ दोख था। पर मै क्या करती संदीप तो मेरे घर के सामने रहता था। मै कब तक उसे रोक पाती। मै तो एक लड़की हूँ सुधाकर, उसके सामने कमजोर पड़ गयी।
जब तुम मुझसे मिलने कानपुर आते तब मुझे बहुत ख़ुशी होती। पर साथ ही ये डर लगा रहता कंही तुम मेरे और संदीप के बारे में और संदीप, मेरे तुम्हारे बारे में न जान जाये।
और फिर यही हुआ जिसका मुझे अंदेशा था। उस दोपहर जब तुम मुझे अपनी बाँहों में लेकर लेते हुए थे, तो बेध्यानी में मेरे होंठो से तुम्हे रेसिस्ट करते हुए संदीप का नाम निकल गया। तुम्हारे सवालों से मजबूर हो कर मैंने तुम्हे यह कह कर बहला दिया कि इस हालत  में किसी लड़की के होंठो से उसी का नाम निकलेगा, जिसे या तो वो बहुत प्यार करती हो या बहुत नफरत। तुम मेरी ये बात सुन कर की मै  संदीप से बहुत नफरत करती हूँ थोडा शांत हो गए। क्या करूं सुधाकर मुझे ये झूठ बोलना पड़ा क्यूँ की मै तुम्हे दुखी नहीं देख सकती थी। तुम तो जानते हो सुधाकर मै ख़राब लड़की नहीं।
सुधाकर जैसे तुम्हे मेरे और संदीप के अफेयर को लेकर शक हो गया वैसे ही संदीप को भी मेरे और तुम्हारे अफेयर को लेकर शक हो गया। आखिर जब तुम मुझसे मिलने आते तो मै उस वक़्त संदीप से दूरियां बना कर रखती थी। इस बात ने उसके मन में शक पैदा कर दिया। जो तब पक्का हो गया जब उसने हमें कभी साथ-साथ घूमते देख लिया।
अब तुम दोनों ही मुझसे एक दुसरे का नाम लेकर झगड़ने लगे। कभी-कभी मुझे लगता की मै चक्की के दो पाटों में पिस रही हूँ। सच पूछो तो सुधाकर मै तुम दोनों से ही प्यार करती थी। पर शायद तुम यकीन न करो आज मै सिर्फ तुम्हे प्यार करती हूँ। सच पूछो तो तुम्हारी पूजा करती हूँ।
सुधाकर, तुम मयंक को लेकर भी काफी अफसेट रहे। गाहे-बगाहे तुम मेरे, मयंक से सम्बन्ध होने का लांछन मुझ पर लगाते रहे। मैंने हमेशा  तुम्हारे इस लांछन का विरोध किया। और इस विरोध की सही वजह भी मेरे पास थी। मयंक तो उम्र में मुझसे छोटा था। ऊपर से मेरे सगे ताऊ का लड़का। मेरे इस तर्क पर तुम चुप हो जाते। पर सुधाकर आज मै सोचती हूँ तो हैरान होती हूँ की तुम ये सब कैसे जान लेते थे।
हाँ, आज मै कबूल करती हूँ , मै मयंक के आगे झुक गयी थी। वॉक्सेर तन्हाइयों में मुझे छेड़ा करता था। फिर वो तुम्हारे और संदीप के साथ मेरे अफेयर के बारे में मुझसे पूछने लगा। पूछने क्या उसने कई सबूत ऐसे दिखाए जो सिद्ध करने के लिए काफी थे की मेरा तुम्हारे और संदीप के साथ अफेयर है।
तुम्ही बताओ सुधाकर, मै क्या करती अगर वो सबूत मेरे परिवार और दुनिया के सामने रख देता, मै तो जीते-जी मर जाती। तुम तो जानते हो सुधाकर मै ख़राब लड़की नहीं। अपनी बदनामी बचाने के लिए मै उसके आगे झुक गयी वो मुझे अपने बिस्तर पर यूज करने लगाऔर मै उसकी सेक्स पूर्ति करने लगी। तुम्हारी कसम मैंने मयंक को कभी प्यार नहीं किया। कोई लड़की अपने सगे ताऊ के लड़के को प्यार कर भी कैसे सकती है। मै तो बस उसकी ब्लैकमेलिंग का शिकार हुई। पर यकीन करो अब मेरा उससे कोई सम्बन्ध नहीं, आखिर अब मेरी शादी होने वाली है। और मै नहीं चाहती मेरा शौहर मुझे खराब लड़की समझे, क्यूँ की तुम तो जानते हो मै ख़राब लड़की नहीं।
आज मै मयंक से ढेरों नफरत करती हूँ, उसने न केवल मुझे ब्लैकमेल किया वरन जब दिलीप की स्मार्टनेस पर उससे फ्लर्ट करने लगी तो उसने वो राज तुम्हे और संदीप को बता दिया। सुधाकर, दिलीप जैसा क्यूट लड़का मेरी ज़िन्दगी में आया ही नहीं था। वह मयंक का दोस्त था और उम्र में मुझसे छोटा। जब कभी में मयंक के साथ बिस्तर पर होती तो मेरे ख्यालों में दिलिप आ जाता और फिर मै अपने हवाश खोने लगती।
और फिर उस दिन एक लड़की होंने के वावजूद भी मैंने दिलीप से प्रणय निवेदन किया और उसने भी मुझे निराश नहीं किया। सच पूछो तो तुम्हारे बाद दिलीप ही वो लड़का था जिसके नाम से मेरे मन में गुदगुदी होती थी। वो मेरे लिए मयंक और संदीप से बढ कर था। पर जब भी मैंने दिल की गहराइयों से सोचा तो तुम्हे हमेशा उस से ऊपर पाया। सुधाकर तुम में और दिलीप में एक   फर्क था,तुम मुझे दिल की गहरायिओं से चाहते थे पर दिलीप नहीं। उसका मेरे से साथ बस सेक्स तक था, वो कभी मन से मेरे से जुड़ नहीं सका। क्यूँ जुड़ता ? उसने तो मुझे प्रपोज नहीं किया था। बस मेरे समर्पण को उसने अपने बिस्तर में जगह दी थी।
सोचो सुधाकर मेरे लिए कितना कठिन काम था, उस वक़्त तुम चारो से तालमेल बिठाना दिलीप ने कभी तुम तीनो को लेकर मुझसे कभी कोई बात नहीं की। पर तुम तीनो ही मुझे एक-दुसरे का नाम लेकर टॉर्चर करते रहे। इस लाजिमी था की मै दिलिप की तरफ ज्यादा झुक जाऊ। और ऐसा ही हुआ, मै दिलीप की तरफ झुकने लगी। उससे प्यार करने लगी। पर जानते हो सुधाकर उसने मुझे और मेरे प्यार को ठुकरा दिया। एक दिन वो एक लड़की के साथ मुझे मिला, जानते हो वो लड़की कौन थी ? वो लड़की और कोई नहीं मेरी छोटी बहन थी। वो दोनों मेरे सामने प्रेमिप्रेमिका के रूप में खड़े थे।
मै क्या करती सुधाकर, सब्र का घूंट पीकर रह गयी। वो दिलीप जिसने मेरे अंग-अंग को चूमा था, वो आज मेरे सामने ही मेरी छोटी बहन को चूम रहा था। मै कुछ नहीं कर सकती थी। मै कुछ न कर पाई।
अभी मै दिलीप के सदमे से उबर भी न पाई थी, कि एक दिन संदीप मेरे सामने रुपाली को ले कर आ गया। रुपाली को मै पहले से जानती थी। वो संदीप से दूर के रिश्ते की कोई लड़की थी। पर आज उन दोनों का कुछ और ही रिश्ता मेरे सामने था। दोनों ने मेरे सामने ही एक दुसरे से शादी का ऐलान कर दिया। उनके इस ऐलान से मै स्तब्ध रह गयी सुधाकर। दिलीप के बाद मुझे ये दूसरा झटका था। मै पहले भी बता चुकी हूँ सुधाकर कुछ भी हो मै संदीप से प्यार करती थी। अपने प्यार को यूँ तार-तार होते देख मै अपने हवाश खो बैठी। मुझे जाने क्या हो गया, मै रुपाली के सामने ही संदीप से मुझे अपनाने की मनुहार करने लगी। पर संदीप ने मेरी एक न सुनी  और जब मै संदीप के क़दमों से लिपट कर रो रही थी तो रुपाली ने हद कर दी उसने मेरी कमर पर लात मर  कर मुझे फर्श पर गिरा दिया। मै जब तक संभलती रुपाली ने कई थप्पड़ मेरे गाल पर जड़ दिए। मै दर्द से कराहती रही। और संदीप चुप-चाप खड़े मुझे पिटता देखता रहा। वो दोनों ही मुझे मेरे रूम की फर्श पर रोता-सिसकता छोड़ कर चले गए। मै उन्हें बस जाते हुए देखती रही। तुम्ही बताओ क्या करती ? क्या कर सकती थी मै ?
तुम्ही बताओ सुधाकर उस दिन के बाद से जब भी मै संदीप और रुपाली के सामने पड़ जाती उस वक़्त मेरी क्या दशा होती होगी। और उस वक़्त का मेरा हाल मै बयान नहीं कर सकती, जब रुपाली, संदीप का हाथ पकड़ कर मेरी तरफ जहरीली मुस्कान से देखती।
सच पूछो सुधाकर उस वक़्त मुझे तुम्हारी बहुत याद आती। पर तुम मुस्से उस वक़्त बहुत दूर थे। मुम्बई में। तुम मुम्बई क्यूँ गए ये तुमने मुझे कभी बताया ही नहीं। ये तो बाद में मुझे तुम्हारे दोस्त नवनीत से मालूम पड़ा, उस वक़्त तुम वहां अपने केंसर का इलाज करा रहे थे। सच सुधाकर आज मै बहुत दुखी हूँ कि उस वक़्त तुमने मुझे अपना समझ कर अपनी बीमारी नहीं बताई। तुम तो मेरे बारे में जानते हो सुधाकर 'मै खराब लड़की नहीं।'
यही वो वक़्त था जब मै देवेश के करीब आई वो मेरे ही कालेज के प्रोफेसर थे, और मै उनकी स्टूडेंट। उस वक़्त मै अकेली थी। दिलीप और संदीप की ठुकराई हुई। मयंक की तो बात करना ही बेकार है, वो तो न जाने कितनी बार्सेक्स के पलों में मुझे द्रोपदी पुकार चूका था। ये शायद उसकी जुबान का असर था जो मेरी ज़िन्दगी में पांचवा पुरुष आया।
हाँ देवेश शादी-शुदा थे, दो बच्चो के पिता। पर जब उन्होंने उस दिन जब मै उनके घर कुछ साइक्लोजी की समस्याए पूछने गयी थी, उन्होंने बातों-बातों में नेरे स्तन दबा दिए। यकीन करो सुधाकर अगर उस वक़्त तुम मेरे करीब होते तो उस दिन मै देवेश के साथ उनके बेडरूम में हरगिज न सोती। पर तुम तो शायद मुझसे नफरत करने लगे थे, मुझसे दूरियां बना बैठे थे। मुझे बिना कोई उलाहना दिए।
सुधाकर, आज मुझे ये तुमसे कहने में कोई झिझक नहीं, कि देवेश ने मुझे सब से ज्यादा जिस्मानी सुख दिया। शायद वो शादी-शुदा था, अनुभवी था इसलिए। वो बिस्तर पर मुझे खिलौने की तरह इस्तेमाल करता, और मै चाभी लगी रबड़ की गुडिया की तरह उसके हाथों से गुथती रहती। कभी-कभी रोटिया बनाने के लिए आटा गुथते समय मुझे देवेश की याद आ जाती, आखिर वो भी मुझे बिस्तर पर ऐसे ही गुथता था। और मै जल्दी-जल्दी खाना बना कर उसके पास पहुँच जाती।
पर देवेश का शादी-शुदा होना एक दिन मुझ पर बहुत भारी पड़ा। देवेश से सम्भोग के छड़ों में उसकी पत्नी आ गयी और फिर वो झाड़ू और चप्पलों से मेरी तब तक खबर लेती रही जब तक मै गिरते पड़ते उसके घर से बाहर न निकल आई।
उस दिन के बाद मैंने देवेश की पत्नी और उसकी मार की डर से देवेश के घर की तरफ देखना भी छोड़ दिया। मै उसकी गृहस्थी में आग नहीं लगाना चाहती थी। क्यूँ की मै कोई खराब लड़की नहीं।
सुधाकर, अब में हर जगह से ठुकराई जा चुकी थी। संदीप, दिलीप, देवेश इन तीनो का ही मुझसे जी ऊब चूका था, और ये तीनो ही अपनी दुनिया में खुश थे। केवल मयंक था जो कभी-कभी मेरे पास आता और मुझे जानवर की तरह झिंझोड़ कर चला जाता।
तुम जब भी मिलते, मुझे बेइंतिहा प्यार करते, मेरे सुख दुःख में तुम्ही मेरे करीब होते। कैसे भूल सकती हूँ जब मेरे पापा हॉस्पिटल में मौत से जूझ रहे थे तो सिर्फ तुम्ही वहां मौजूद थे और कोई नहीं। पापा की मौत के बाद तुमने हमारे परिवार को सम्भालने के लिए जो किया वो मै कभी भूल नहीं सकती।
मै अब सिर्फ तुमसे शादी करना चाहती थी पर क्या करूँ तुम हमारी जाती के नहीं। हमसे छोटी जाती के हो, लोग क्या कहेंगे, समाज क्या कहेगा। मुझे एक खराब लड़की माना जायेगा और तुम तो जानते हो 'मै खराब लड़की नहीं।'
मेरी शादी तय हो गयी है। मै जानती हूँ तुम जरुर मेरे सुख के लिए दुआए दोगे और मेरे छोटे भाई-बहनों का ख्याल रखोगे। और क्या लिखूं, बस इतना ही की मुझे कभी खराब मत समझना क्यूँ की 'मै खराब लड़की नहीं।'
                          सुमन सचान
        सुमन का ख़त खत्म हो चूका था और इसी के साथ मेरी ज़िन्दगी का एक अध्याय खत्म हो गया था। अब ये शहर मेरे लिए वीरान था। खत को आग के हवाले कर मै अपना सामान पैक करने लगा।
मै नहीं चाहता था ये खत कोई और पढ़े और सुमन को खराब लड़की समझे।
                                                                     -000000-
     
--सुधीर मौर्य 

6 comments:

  1. देव कुमार झा जी ने आज ब्लॉग बुलेटिन की दूसरी वर्षगांठ पर तैयार की एक बर्थड़े स्पेशल बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ... और हाँ साथ साथ अपनी शुभकामनायें भी देना मत भूलिएगा !
    ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन बातचीत... बक बक... और ब्लॉग बुलेटिन का आना मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. सुन्दर रचना,बेहतरीन, कभी इधर भी पधारें
    बहुत बहुत बधाई
    सादर मदन

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