Thursday, 10 October 2013

मेरे एक गाँव की लड़की - सुधीर मौर्य

मेरा दिल 
आहे जब 
सर्द-सर्द 
भरने लगा था 
कदम दहलीज पे 
जवानी के जब 
रखने लगा था 
तब मेरे 
आँखों से टकराई थी 
मेरे एक 
गाँव की लड़की
जवानी 
तिफ्ली से उसके 
गले लग के 
हंसती थी 
हिरन और 
मोर तकते थे 

जब के चाल 
चलती थी 
उसकी बाहें 
सुनहरी थी 
जुल्फ काली 
घनेरी थी 
नैन फरिश्तों के 
कातिल थे 
होंठ 
दरिया के 
साहिल थे 
कमल से 
बाल महकते थे 
कलश 
सीने में धडकते थे 
मै उससे प्यार करता हूँ 
वो मेरे दिल की 
मंजिल है
मेरे एक गाँव की लड़की 
मेरी उल्फत का 
हासिल है।
--सुधीर मौर्य 

No comments:

Post a Comment