Sudheer Maurya
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नदी पे
तैरते अंगारे
उन अंगारों से निकलती
धुंए की स्याह लकीर
उन लकीरों में
दफन होते मेरे ख्वाब
उन दफन क्वाबो में
भटकती मेरी रूह...
तुम्ही को तलाश करती है
पर तुम खोये कहाँ थे...
तुम तो छोड़ गए थे मुझे
एक बेगाना समझ कर
किसी अपने के लिए...
कौन ढूंढेगा हल इस सवाल का...
क्यों एक गैर को
मेरी रूह तलाश करती है
सदी दर सदी... From 'ho na ho'
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