Monday, 18 February 2013

रकीब संग मुस्करा रहा था..



Sudheer Maurya 
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वो दिल पे नश्तर चला रहा था 
रकीब संग मुस्करा रहा था 

गिरा के आँचल बदन से अपने 
वो हमसे दामन बचा रहा था 

पहन के जोड़ा सितारों वाला 
अहद वफा का भुला रहा था 

जफा निभाता रहा जो हरदम 
वफा का किस्सा सुना रहा था 

जो कम हुई रौशनी शमा की 
'सुधीर' के खत जला रहा था 


सोच विचार से प्रकाशित 
सुधीर मौर्य 'सुधीर' 


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