सुधीर मौर्य 'सुधीर'
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पहली बारिश
उड़-उड़ कें बौछारें
सुखी ज़मीन को
सरशार करती..
स्कूल से आती
बिन छाते के - वो
लपक-लपक के
दुकानों के टीन के शेड में
अपने बदन को
इन अल्हड बौछारों से बचाती
कुछ भीगी-कुछ बाकि
अरे ओ !
लखनऊ की अल्हड लड़की
ये बारिश तो
जीवन का रंग है
भीग-इसमें खुल के भीग
तभी तो
रंग चडेगा तुझपे
पहली प्रीत का
जिसके ख्वाब
बुनती है तूं
अपनी छत पे
खड़े होकर
मेरी छत कीओर
देख कर...
Sudheer Maurya 'Sudheer'
Ganj Jalalabad, Unnao
209869
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