Sunday, 20 May 2012

dastan-e-husn



दोशीजा होठो पे शबनम के कतरे
लचके बदन पे कसाव जो निखरे
सावन को खुमारे जिस्म की याद
कंधो  पे खुलकर ज़ुल्फ़ हरसू बिखरे.




ज़ुल्फ़ खुल गए रात की अंधियारी हे
दुनिया पे उनका खुमार तारी  हे
सितारों का सुकूत दस्तक देता हे
कोई तूफ़ान आने की तय्यारी हे.




सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
209869
09699787634

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