Thursday, 31 May 2012

ख्वाब की किरचें..


वक़्त ने

मेरी बाहं थाम कर

मेरी हथेली पर

अश्क के
दो कतरे बिखेर दिए

मेरे सवाल पर
बोला
ये अश्क नहीं
बिखरे ख्वाब की किरचे हे

सभांल कर रखो
तुम्हे ये याद दिलायंगे
की मुफलिस
आँखों में ख्वाब
सजाया नहीं करते..



By-Sudheer Maurya 'sudheer'

17 comments:

  1. सुंदर भाव सुधीर जी....

    बस कुछ टाइपिंग की त्रुटियाँ खटक रही हैं

    सादर
    अनु

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    1. जी,में सुधारने की कोशिश करता हूँ ..

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  2. kya bhav ukere hai aapne ....

    super..

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  3. जी सर, धन्यवाद...

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  4. बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति !

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  5. क्या सुंदर प्रस्तुति...
    सादर बधाई।

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  6. kya bat.....sundar lekhan ke liye badhai

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  7. kya baat hai....''muflis aankhon mein khwab sjaya nahin karte''

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  8. मुफलिस आँखों में ख्वाब सजाया नहीं करते ...
    ख्वाब भी कहाँ जान बुझ कर सजते हैं , इन पर अपना वश कहाँ !

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  9. बहूत हि कोमल भाव से लिखी बेहतरीन रचना....

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    1. Reena ji thanx, me chahta hun aap http://narisahitya.blogspot.com pr contribute kare...

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  10. बहुत ही सुन्दर कविता...गहरे उतर गयी

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