हम नीमजदा को भी अंगडाई आ गयी
महफ़िल में जो वो रुखसार फरोजा हो गए
वो महफ़िल में आये बनके रकीबे हयात
उनके तीरे नज़र से चाक गरेबा हो गए
स्याह जिन्दगी है बेनूर हें फिजायं
जिस रोज से दोस्तों वो बेवफा हो गए
खामोश हो गए हम उनकी जीस्त के लिए
ज़माने को लगा 'सुधीर' बेजुबा हो गए
'लम्स' से
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९
०९६९९७८७६३४
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