जब तेरे शब्दों की दुनिया
परिवक्व पल्लवित हो जाये
जब तेरे आँचल में खुशियाँ
अपार अपिर्मित हो जाये
तब चुपके से आकर होले से
तुम प्रीत का दीप जला देना
जब गंगा तट पर गंगा की लहरें
आशीष तुम्हरे ही सर दे
जब नील गगन में उड़ने को
परियां तुमको अपने पर दे
तब चुपके से आकर होले से
तुम प्रीत का दीप जला देना
जब रात खोल कर आँखों को
तेरी आँखों मे ख्वाब सजाने लगे
जब सतरंगी हवा उपवन से बहकर
तेरे पाँव में महावर लगाने लगे
तब चुपके से आकर होले से
तुम प्रीत का दीप जला देना
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव
२०९८६९
०९६९९७८७६३४
सुन्दर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई
ReplyDeleteउम्दा प्रतीक्षा गीत .............................वाह
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