Thursday, 17 November 2016

प्रेम के रंग - सुधीर मौर्य

न जाने कितने दिन हुए 
इन्द्रधनुष में नहीं खिलते हैं 
पूरे रंग 
तेरे सुर्ख पहिरन में
जो झिलमिलाते हैं
तेरे बदन के साथ
मैने ही इन्द्रधनुष से मांग कर
भरे हैं प्रिये ! वो रंग

तेरे लहंगे की हरी किनारी
मैने मांगी है धरती के उस पहाड़ से
जहाँ सजती हैं कतारे
सुआपंखी फूलो की
मेरे ही कहने पर आये हैं सितारे
तेरी चुनर में फूल सजाने को
देख निखारा है
तेरी चोली को
सप्तऋषियों की कुमारियों ने
बना दिया है मैने
सारे आकाश को मंडप
और वेदी में जगमगा रही है
सूरज की लौ
देख लड़की !
मैं हूँ वही लड़का
जिसे तूँ कभी
प्रेम करती थी।
--सुधीर मौर्य

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. वाह ... प्रेम है पर कभी कभी कहना भी पड़ता है ... देख उसे ...
    बहुत खूब ...

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