प्यार का पहला पत्थर।
खूबसूरती की पहचान का सलीका आँखों को जन्म से आता है।
एक शरमाए - सकुचाये बदन की आँखों न सिर्फ उसके जिस्म की नक्काशी में डूबी थी बल्कि उसने उसके खूबसूरत नाम की नक्काशी करके उसे और ज्यादा खूबसूरत बना दिया था।
वो नहीं जनता था जिस घड़ी उसके ख्याल फरनाज को नाज़ बना रहे थे। ठीक उस घड़ी फरनाज अपने ख्यालों में उसे पुरु की जगह पुरोहित पुकार रही थी।
यूँ एक - दूसरे के लिए अंजान ख्यालों ने एक - दूसरे के नामो पर नक्काशी करके प्रेम के ताजमहल का पहला पत्थर रखा था।
--सुधीर मौर्य
bahut bahut dhanywad sir..
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