Sunday, 8 May 2016

मेरे और नाज़ के अफ़साने - 1



वो मुलाकात पहली नहीं थी। 
चार आँखे मिली और दो जोड़ी होठों पर मुस्कान थिरक उठी।

आँखों का मिलना और होठों का हँसना, ये पहली बार तो नहीं हुआ था। न ही आखिरी बार। पर होठों की हँसी यूँ पहलीबार बिखरी थी। इस हँसी से दो अनाम बदन नहा उठे थे। न कि सिर्फ बदन बल्कि उनके भीतर धड़कते दिल भी। जो ये जिस्मो जां को मुक्म्म्ल नहलाने के लिए होठों की हँसी कम पड़ी तो एक जोड़ी झील सी आँखों ने उन्हें अपने पहलू में ले लिया।

हाँ, सिर्फ एक जोड़ी आँखें। क्योंकि दूसरी जोड़ी तो पहली जोड़ी आँखों में न जाने कब की डूब चुकी थी।

उस रात मेरी करवटों ने बताया था मुझे कोई और जन्म में भी कोई मुलाकात हुई थी।
--सुधीर मौर्य    

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-05-2016) को "किसान देश का वास्तविक मालिक है" (चर्चा अंक-2338) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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