पौराणिक उपन्यास 'पहला शूद्र' लेखक - सुधीर मौर्य |
बहुत कम लोग होते है जो साहित्यिक राजनीति से कोशो दूर, पुरष्कार लालसा से मीलो दूर और बिना किसी ढोल नगाड़ा के साहित्य सेवा में नौकरी करते हुए इतने मन से समर्पित रहते है। ऐसे ही है अपने Sudheer Maurya जी। नौकरी करते हुए उनकी अब तक दस से अधिक किताबे प्रकाशित हो चुकी है। यह अपने आप में ही बहुत बड़ी बात है। वैसे तो उनकी हर वर्ष कोई न कोई किताब प्रकाशित हो जाती है परंतु इस बार वह बड़े ख़ास अंदाज में आये है। उनकी पुस्तक Pahla Shudra - पहला शूद्र प्रकाशित हुई है। आज के दौर में युवा लेखक अधिकतर प्रेम कहानियां ही लिखने में लगे पड़े है। परंतु यह पुस्तक इस मायने में अलग एवं महत्त्वपूर्ण है कि यह एक ऐतिहासिक उपंन्यास है। ऐतिहासिक उपंन्यास लिखने वाले लेखक हिंदी में इस वक्त कम ही है। संदीप नय्यर जी का ऐतहासिक उपंन्यास मुझे याद आता है 'समरसिद्धा', जो आज से दो वर्ष पूर्व पेंगुइन हिंदी ने छापा था। इस बीच एक दो उपंन्यास और आए हो तो मुझे जानकारी नहीं है।
पौराणिक उपन्यास 'पहला शूद्र' लेखक - सुधीर मौर्य |
वैसे तो इस बात से कतई इंकार नहीं है कि इस पुस्तक की विषय वस्तु बिलकुल अलग है। इसमें इन्द्र, भरद्वाज, वशिष्ठ और अगस्त्य जैसे मुनियो के द्वारा सप्त सैंधव की षड्यंत्र गाथा है। जैसा कि हम सभी को पता है कि सुधीर मौर्य जी के पास शब्दो का असीम भण्डार है, जो बहुत कम युवा लेखको के पास है । उनकी पिछली किताबो में उर्दू शब्दो का काफी प्रयोग होता था परंतु इस बार इस पुस्तक के अनुसार उन्होंने उस वक्त के शब्दो को प्रयोग किया है। जिसे पढ़ते हुए ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम दूरदर्शन पर श्री कृष्णा, रामायण या फिर ओम नमः शिवाय जैसे सीरियल देख रहे हो। जैसे शराब की जगह पर सोम शब्द का उपयोग किया गया है। इस वाक्य में ही आप इस पुस्तक की भाषा का आंकलन कर लेंगे। -
" हाँ देव, ये सोम नहीं, सूरा है। इसके पान से रति विलास का आनंद बढ़ जाता है। और आज की रात तो आप देवी शची ले साथ व्यतीत करने वाले है। " शाश्वती ने नहुष को बंकिम नेत्रो से देखकर कहा।
पुस्तक शुरुआत से अंत की तरफ सीधी बढ़ती जाती है। इसके साथ ही उन्होंने ब्राम्हण वाद का मुनियो द्वारा बनाये गए षणयंत्र का भी उल्लेख किया है-
'ये स्मरण रहे, हमें वही परिपाटी स्थापित करनी है जिसमे हम मुनि सर्वश्रेष्ठ बने रहे। देवो से भी श्रेष्ठ। किसी भी परिस्थिति में हमें अपनी श्रेष्ठता बनाये रखनी है। राजदुहिता आहिल्या का मुनि गौतम से विवाह हमारी इस परंपरा का आरम्भ है। भले ही हम मुनि और राजन्य आर्य हो, किन्तु हम मुनि ब्राह्मण, राजन्य क्षत्रियो से कहीं श्रेष्ठ है और इसलिए उनकी दुहिताओ पर हमारा अधिकार स्वयमेव सिद्ध हो जाता है। अहिल्या का गौतम से विवाह कराकर हमने उसी अधिकार का प्रयोग किया है।
पुस्तक आपको पढ़ने के लिए बांधे रखती है, आगे क्या होगा यह जान्ने के लिए आप पुस्तक बेताबी से पढ़ते रहते है। परंतु इस चक्कर में कहीं कहीं पर ऐसा हुआ है जैसे लग रहा हो सीरियल का रिकैप दिखाया जा रहा हो , लगभग उस रफ़्तार में भाग रही हो। इसका उदाहरण -
वहां से लौटकर इन्द्र अपने एक सेवक तक्ष के पास जाकर बोला, 'तक्ष तुम अपने कुलिश से बंदी विश्वरूप त्रिषिरा का सर काट दो।
" जो आज्ञा पुरून्दर" कहकर तक्ष ने बंदीगृह में जाकर कुलिश के प्रहारों से सोते हुए त्रिषिरा विश्वरूप का सिर काट दिया और फिर आकर उसने अपने इस कृत्य की सूचना इन्द्र को दी, तो प्रसन्न होकर इंद्रा ने पान के लिए उसे सोमरस लाने को कहा।
" जो आज्ञा पुरून्दर" कहकर तक्ष ने बंदीगृह में जाकर कुलिश के प्रहारों से सोते हुए त्रिषिरा विश्वरूप का सिर काट दिया और फिर आकर उसने अपने इस कृत्य की सूचना इन्द्र को दी, तो प्रसन्न होकर इंद्रा ने पान के लिए उसे सोमरस लाने को कहा।
अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि यह पुस्तक कहीं से भी उनकी पिछली किताबो से मेल नहीं खाती। अगर आपने अब तक सुधीर जी कोई अन्य पुस्तक पढ़कर राय बना ली है तो मैं आपसे कहना चाहूंगा कि इसे पढ़ते वक्त आपको लगेगा ही नहीं कि अपने इस लेखक की पिछली पुस्तक पढ़ी हुई है। अगर आप ऐतिहासिक उपंन्यास के शौक़ीन है तो एक बार इसे ट्राय कर सकते है।
सुधीर मौर्या जी को इस पुस्तक की अलग विषय वस्तु, इस पुस्तक की भाषा शैली के साथ न्याय करने के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं। उम्मीद है, आगे हमें और भी बेहतरीन पुस्तके पढ़ने को मिलेंगी।
इस उपंन्यास को Read PubIication ने प्रकाशित किया है।
नोट :- मैं कोई आलोचक नहीं हूँ, इसे पुस्तक पढ़ने के पश्चात् एक पाठक की त्वरित प्रतिक्रिया समझी जाए।
-- भगवंत अनोमल
हरे रंग के कारण लेख पढने में दिक्कत हो रही है। हो सके तो इसका निदान करें।
ReplyDeleteजी भाई हरा रंग हटा दिया है।
Deleteबहुत धन्यवाद सर।
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