Friday, 31 March 2017

ओ मेरी सुघड़ देवि ! (कविता) - सुधीर मौर्य

ओ मेरी सुघड़ देवि !

मैं कामना करता हूँ 
कि तुम लौट आओ 
मेरी ज़िन्दगी में 
और बचा लो 
मेरी बची हुई उम्र को 
शापित होने से। 

ओ मेरी सुघड़ देवि !
मैं दुआ मांगता हूँ 
सोते - जागते 
हर घडी 
कभी अपने 
तो कभी तुम्हारे देवताओं से 
कि वो भेज दें तुम्हे 
मेरे संग उस राह पे 
जिसकी मंज़िल के भाग्य में लिखा है 
कि वो तुम बिन मुझसे मिल नहीं सकती। 


ओ मेरी सुघड़ देवि !
तुम चली आना 
किसी रोज, ख्वाब के ही रस्ते 
और मुझे गढ़ना, उस लायक 
कि मै बन  संकू 
जरा सा तुम्हारे लायक। 

ओ मेरी सुघड़ देवि !
तुम पाट  देना 
मज़हब के दहकते दरिया को 
अपनी पलकों की शीतल जुम्बिश से 
और बांध लेना मुझे 
अपनी ज़ुल्फ़ों में हमेशा के लिए। 

ओ मेरी सुघड़ देवि !
देखना कहीं ऐसा न हो 
कि हमारे मज़हबों का अलग होना 
हमारी मन्नतों से बड़ा हो जाये। 
--सुधीर मौर्य  

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