एक ठो वामपंथी स्त्री हैं, मेरी किसी पोस्ट को पढ़कर मुझ पे ज्ञान बघारते हुए बोली 'ये पद्मिनी काल्पनिक पात्र हैं फिर अगर कोई उन पर अपने हिसाब से कहानी लिखे या फिल्म बनाये तो तुम्हे क्या तकलीफ और फिर अभिव्यक्ति की आजादी पे कोई रोक नहीं लगा सकता।'
उनकी बात सुनकर मैने जवाब दिया 'हां अभिव्यक्ति की आजादी भी कोई चीज है।'
फिर कुछ देर रूक कर मै बोला ' तो मै भी अनोखे लाल और तुम्हारी प्रेमकहानी लिख सकता हूँ।'
' अरे कौन अनोखे लाल, मै तो इसे जानती तक नही और उससे मेरी प्रेमकहानी, क्या बकते हो. ' वो गुस्सा होते बोली।
मैने सहजता से कहा ' जी अनोखे लाल काल्पनिक पात्र है इसलिए उसकी प्रेमकहानी किसी के साथ लिख सकता हूँ, इसमे तुम्हे क्या तकलीफ आखिर अभिव्यक्ति की आजादी भी कोई चीज है।'
मेरी बात सुन के वो मुझे खा जाने वाली नज़रो से घूर के बिना कहे कुछ चली गई।
--सुधीर मौर्य
उनकी बात सुनकर मैने जवाब दिया 'हां अभिव्यक्ति की आजादी भी कोई चीज है।'
फिर कुछ देर रूक कर मै बोला ' तो मै भी अनोखे लाल और तुम्हारी प्रेमकहानी लिख सकता हूँ।'
' अरे कौन अनोखे लाल, मै तो इसे जानती तक नही और उससे मेरी प्रेमकहानी, क्या बकते हो. ' वो गुस्सा होते बोली।
मैने सहजता से कहा ' जी अनोखे लाल काल्पनिक पात्र है इसलिए उसकी प्रेमकहानी किसी के साथ लिख सकता हूँ, इसमे तुम्हे क्या तकलीफ आखिर अभिव्यक्ति की आजादी भी कोई चीज है।'
मेरी बात सुन के वो मुझे खा जाने वाली नज़रो से घूर के बिना कहे कुछ चली गई।
--सुधीर मौर्य
बहुत खूब
ReplyDeleteजी धन्यवाद।
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