यूँ पंद्रह घंटे के
सफर के बाद
वो विदा होती है मुझसे
मेरी प्रेमिका बनकर
और मैं समेट लेता हूँ
उसके गेसुओं की खुशबू
अपने गाल के रस्ते
दिल के गोशे में
मूँद कर आँखे
अपने लरज़ते होठों से
कि मिल जाते है
तुम्हारे लिखे किरदारों को
तुमसे मिलाने को
राह में यूँ
सफर के साथी।
(माई लास्ट अफेयर का एक किरदार यूँ हमराह हुआ )
--सुधीर मौर्य
बहुत खूब ..
ReplyDeletebahut abhar sir..
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