Thursday, 12 February 2015

प्रेम, ख़ुशी और स्वार्थ - सुधीर मौर्य



मैं ठुकरा सकता था 

तुम्हारा प्रेम 
ठीक वैसे ही 
जैसे कभी अर्जुन ने 
ठुकराया था 
उर्वशी का प्रेम


लड़की। 

पर तूने प्रेम कहाँ किया था 
तूने तो बनाया था 
मुझे 
आलम्बन अपने स्वार्थ का

कहो कैसे ठुकराता मै तुझे ?

जबकि तू प्रेम नहीं 
 चाहती थी ख़ुशी अपनी। 



           --सुधीर मौर्य


2 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (14-02-2015) को "आ गया ऋतुराज" (चर्चा अंक-1889) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    पाश्चात्य प्रेमदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. Nice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us. Bank Jobs.

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