अभी तक महफूज़ हैं रखे
फाइलों में वो मेरी सब
मेरे हर एक ख़त का
दिया हुआ जवाब तेरा...
महकती डायरी मेरी
अब तलक अलमारी में रखी
जिसके पन्नों में रखा था
दिया हुआ गुलाब तेरा...
मेरे आँखों के आगे ही
तेरे सुर्ख पहिरन थे
अभी तक याद है मुझको
दूर जाना शिताब तेरा...
सबब ठुकराने का मुझको
तलाशा हर जगह मैंने
खुश्की में, दरिया में,
बातिल में, हकीक़त में.
महावर की जगह तुने
सुनहरी पायलें मांगी
कहाँ हासिल तुझे होता
ये सब मेरी मुहब्बत में.
मैंने अपना तुझे माना
तुने सपना मुझे समझा
बस इतना सा फर्क था
तेरी मेरी मुहब्बत में....
From My Poem Collection 'ho na ho'
सुधीर मौर्य 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव (U.P.)
209869
096699787634
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (17-11-2013) को "लख बधाईयाँ" (चर्चा मंचःअंक-1432) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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गुरू नानक जयन्ती, कार्तिक पूर्णिमा (गंगास्नान) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ji sir, dhanuywad
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteनई पोस्ट मन्दिर या विकास ?
नई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
dhanywad
Deleteसुन्दर प्रस्तुति ..
ReplyDeletedhanywad
Deleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteshukriya
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