जनवरी की
सर्द सडकों के
दोनों ओर
हल्की हवा से
सरसराते
सूखे पेड़-हरे पत्ते
मेरी बेबसी पर
कभी रोते
कभी हँसते
बड़ा गहरा
ताल्लुक है मेरा
इस सड़क
और इनके किनारे के
इन पडों से
जिन्होंने मुझे
निहारा था कभी
मेरे गाँव की
दोखेज दोशीजा के
क़दमों से कदम
मिलाते
कभी पैदल
कभी सायकल पर
प्रीत के
गीत गुनगुनाते
कभी हाथों में हाथ डाले
कभी एक दुसरे को सम्भाले
ना जाने कितनी बार
हमने मुकम्मल किया
ये रास्ता
बस हम दोनों
ये सड़क
और इसकी ओर के पेड़
और किसी से
न था वास्ता
आज भी वही सड़क
आज भी वही हवा
पर अब वो नहीं
मेरे क़दमों से कदम
मिलाने के लिए
और रंग बदल गया
इन पेड़ों का मेरी तरह
सूखे पेड़ हरे पत्ते
मेरी बेबसी पर
कभी रोते
कभी हँसते
By- Sudheer Maurya 'Sudheer'
सर्द सडकों के
दोनों ओर
हल्की हवा से
सरसराते
सूखे पेड़-हरे पत्ते
मेरी बेबसी पर
कभी रोते
कभी हँसते
बड़ा गहरा
ताल्लुक है मेरा
इस सड़क
और इनके किनारे के
इन पडों से
जिन्होंने मुझे
निहारा था कभी
मेरे गाँव की
दोखेज दोशीजा के
क़दमों से कदम
मिलाते
कभी पैदल
कभी सायकल पर
प्रीत के
गीत गुनगुनाते
कभी हाथों में हाथ डाले
कभी एक दुसरे को सम्भाले
ना जाने कितनी बार
हमने मुकम्मल किया
ये रास्ता
बस हम दोनों
ये सड़क
और इसकी ओर के पेड़
और किसी से
न था वास्ता
आज भी वही सड़क
आज भी वही हवा
पर अब वो नहीं
मेरे क़दमों से कदम
मिलाने के लिए
और रंग बदल गया
इन पेड़ों का मेरी तरह
सूखे पेड़ हरे पत्ते
मेरी बेबसी पर
कभी रोते
कभी हँसते
By- Sudheer Maurya 'Sudheer'
जीवन की रीत है ये ... बस रास्ते, हवा तो वही रहती है ... चलने वाले कदाम बदल जाते हैं ...
ReplyDelete