Wednesday, 1 May 2013

सूरज तक प्रेम की राह - सुधीर मौर्य



दिसम्बर के महीने में 
लाल सायकल चलाने में 
तुम्हारे मुंह से 
निकली भाप 
मुझे 
पहाड़ो पे छाई 
धुंध की याद 
दिल देती थी।
और मै खो जाता था 
खुली आँखों में 
तुम्हारा सपना सजा कर 
कल्पनाओ के 
रास्ते पर 
जो जाते थे 
कभी मंदिर 
कभी नहर 
कभी पहाड़ 
और कभी-कभी 
अन्नत दूर 
सूरज तक।

मै बेतहाशा 
भागता रहा 
इन अधबुने 
सपनो के पीछे 
खुद को पुकारने वाली 
हर आवाज को 
अनसुना करके।

और देखो 
जब सपने बिखरे 
मै वहां खड़ा था 
जहाँ सपने थे,
तुम 
मुझे पुकारती 
आवाज़े।

सुधीर मौर्य 'सुधीर'
ग्राम और पोस्ट - गंज जलालाबाद 
जनपद - उन्नाव ( उत्तर प्रदेश )
 पिन – 209869

2 comments:

  1. सपनों का बिखराव , सपने , सूरज तक प्रेम की छलांग ...
    शानदार !

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