Tuesday 3 April 2012

रोजे अज़ल करेंगे...



जीने नहीं देते ये अलम हमको दयार के
जाते ही उसके रूठे हसे दिन बहार के


बेपर्दा हो गए वो निहा दर्द जिगर के
केसे छुपायं अफसुर्दा दहन बीमार के


काबा गए हम न कभी गए दिएर में 
रोजे अज़ल करेंगे केसे रुख परवरदिगार के


हम गए जो अपनी जान से उनकी बला से ये
संग लिए रकीब फिरते वो मेरी मज़ार के


उनको मयस्सर ज़ीस्त के  लुत्फो हयात सब
जेरे ज़मीं इश्क में 'सुधीर' दो जहाँ हार के

मेरे काव्य संग्रह 'लम्स' से

Sudheer Maurya
VPO-Ganj Jalalabad
Unnao-209869
09699787634
mauryasudheer@yahoo.in

6 comments:

  1. वाह बहुत उपयोगी प्रस्तुति!
    अब शायद 3-4 दिन किसी भी ब्लॉग पर आना न हो पाये!
    उत्तराखण्ड सरकार में दायित्व पाने के लिए भाग-दौड़ में लगा हूँ!

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  2. बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

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  3. पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें

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