Monday, 30 April 2012

Raqib sang muskra raha tha



वो दिल पे नश्तर चला रहा था
रकीब संग मुस्करा रहा था

 गिरा का आँचल बदन से अपने
वो हमसे दमन बचा रहा था

पहन के जोड़ा सितारे वाला
अहद वफ़ा का भुला रहा था

जफा निभाता रहा जो हरदम
वफ़ा के किस्से सुना रहा था

जो कम हुई रौशनी शमा की
'सुधीर' के ख़त जला रहा था


सुधीर मौर्या 'सुधीर'
09699787634

1 comment:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना..
    :-)

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