तुम ने
कहा था एक दिन
शरीफे के पेड़ के नीचे
'शरीफ लड़कियों' की
निशानी है
ये देह का बुरका
मैने मान लिया था
उस शाम तुम्हारी उस बात को
मेरे गले लगते ही
चिहुंक पड़ी थी तुम
उस सुनहरी शाम में
और आँख बंद करके
तुमने उतार दिया था
वो काला बुरका अपनी देह से
आँखों में आंसू भर के
न जाने कितनी देर
तुम दिखाती रही थी
अपनी देह के वो नीले निशान
जो बनाये गए थे
तुम्हे शरीफ लड़की बनाये रखने के
लिए।
उस रात
तुम हांफती साँसों के साथ
भाग कर आ गई थी मेरे घर
मेरे हाथो के स्पर्श से हौसला पाके
तुमने कहा था सिसकते हुए
तुम्हे मंज़ूर है
शरीफ लड़की की जगह
बदनाम लड़की होना
और उस रात की सुबह
मैने लिख दिया था
अपनी डायरी के किसी कोने में
मैं प्रेम करता हूँ
दुनिया की सबसे ज्यादा शरीफ लड़की
से।
--सुधीर मौर्य
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07-11-2015) को "एक समय का कीजिए, दिन में अब उपवास" (चर्चा अंक 2153) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut bahut aabhar sir ji
Deletedhanywad, jarur
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteji sir bahut bahut aabhar..
Deleteबहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeletebahut shukriya, jarur..
Deleteशरीफे के पेड़ के नीचे
ReplyDelete'शरीफ लड़कियों'
गजब से शब्द .........बेहतरीन
bahut dhanywad..
Deleteबहुत सुंदर ...
ReplyDeletebahut aabhar..
Deleteसुंदर !
ReplyDeletedhanywad..
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