Tuesday, 14 October 2014

डाली: गुड़िआ एक फरेब की...

तूं पूरी मै पूरा

आधी रात का प्यार अधूरा
मॉग कहीं सिन्दूर कहीं
सजती सुहागसेज कहीं
कभी दोस्ती वैर कभी
पति कहीं कौमार्य कही
मन मे कपट आंख मे आंसू
कितने घायल कितने बिस्मिल
तूफान कही कहीं पे साहिल
तूझे मुबारक झूठ तुम्हारा
बस इतना था साथ हमारा.
--सुधीर

7 comments:

  1. न तू पूरी न मैं पूरा..,
    तू आटे का लड्डू मैं गूंद का चूरा..,
    तू हो जा पारा मैं हो जाऊँ बूरा..,
    देख तू भी अधूरी मैं भी अधूरा.....

    ReplyDelete
  2. ऎसे लिखते हैं लवलेटर.....

    ReplyDelete
    Replies
    1. ji mem me pryas karunga is tarah prem sandesh likhne ka....bahut aabhar...

      Delete