Thursday 26 December 2013

असीरी - सुधीर मौर्या


 शफक की धुप में
मे जाकर छत पर तनहा खड़ा हो गया
पड़ोस की छत पे
बाल बनाती हुई लड़की
मुस्करा दी
मैंने उसकी जानिब
जब कोई तवज्जो न दी
तो वो उतर कर
निचे चली गई
काश कुछ साल पहले
में एसा कर पाता
किसी की जुल्फों की 
असीरी से खुद को बचा पाता
शायद तब 
ये शफक ये शब् 
मेरे तनहा  न होते
या फिर वही बेवफा न होते
में- छत से उतर कर
एकांत कमरे में
तनहा बैठ गया
'हो न हो' से
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
गंज जलालाबाद,उन्नाव-२०९८६९     
०९६९९७८७६३४

2 comments: