बसंत से मेरी भी रस्मों राह होगी
कभी तो ये जीस्त खुश्निगाह होगी
तेरी आँखे झुक झुक के उठती होंगी
ये वो राज है रात जो स्याह होगी
सुना है वो भी रात भर सो न पाया
की छुप छुप के उसने पढ़ी 'आह' होगी
मेरी कब्र पे रौशन जो उसने शमा की
जरूर मेरे ग़मों से वो आगाह होगी
-- सुधीर मौर्य
बेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (19 -06-2013) के तड़प जिंदगी की .....! चर्चा मंच अंक-1280 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
ji dhanywad
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