Friday, 6 July 2018

अड्डेबाज़ी (लघुकथा) - सुधीर मौर्य

'मेरे ग्रुप को ज्वाइन करोगी ?' लड़के ने पूछा।
'नो मैं ग्रुपबाजी नहीं करती।' लड़की बेपरवाही से बोली।
'फिर क्या करती हैं ?' लड़के ने साहस बटोर कर पूछा लिया।
'अड्डेबाज़ी।' लड़की का स्वर पहले से भी ज्यादा बेपरवाह हो चला था।
--सुधीर मौर्य  

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-07-2018) को "ओटन लगे कपास" (चर्चा अंक-3026) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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