Thursday, 22 June 2017

सपने,नाम और महत्वकांक्षा (लघुकथा) - सुधीर मौर्य

मेरी एक दोस्त है। बड़े बड़े ख्वाब देखने वाली और उन ख्वाबो को पूरा करने के लिए पूरा जोर लगाने वाली। 
अचानक मुझसे मिली और कहा की न्यूज़ पेपर में इश्तिहार देकर और कोर्ट से हलफनामा बनवाकर वो अपना  नैम चेंज करवाना चाहती है। 
'क्यों वाणी ऐसा क्या हुआ जो तुम अपना नाम बदलना चाहती हो ? कितना अच्छा तो हे तुम्हारा नाम।'
मेरे सवाल में वो तुनक के बोली बस यही चिंता मुझे खाये जाती है कि कहीं ऐसा न हो कि मेरा नाम वाणी होने की वजह से कहीं मेरे सपने अधूरे न रह जाएँ।'
'अरे नहीं नहीं नाम से सपनो का न पूरे होने का क्या सम्बन्ध ?' मैने उसे फिर समझाया। 
'नो मैं कोई रिस्क नहीं ले सकती मुझे तो लगता है आडवाणी जी के नाम में वाणी होने से उनके सपने पूरे नहीं हुए। इसलिए मैं अपना नैम ही चेंज कर दूंगी।'
अब उसकी इस बात का मैं क्या जवाब देता बस हँस के हाँ में सर हिला दिया। 
सुधीर    

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