Sunday, 25 December 2016

दिसम्बर और मुरादों के दिन - सुधीर मौर्य


देख लड़की मैं जानता हूँ
तूँ देखा करती थी कनखियों से किसी को
 अपनी छत पे टहलते हुए
हाथो में कोई खुली किताब लिए
देख लड़की मैं जानता हूँ 
तूँ कामना करती थी
मुरादों के दिन की 

दिसम्बर की कंपकपाती रात की तन्हाई में
अपनी सांवली गुदाज़ उंगलियों से
अपनी कमर से इज़ारबंद खोल के
देख लड़की तेरी कजिन ने बताया था मुझे
तूँ प्रेम करती है किसी को डर - डर के
देख लड़की आज कहता हूँ मैं तुझसे 

प्रेम कभी डर - डर के नहीं होता
या तो प्रेम होता है या नहीं होता
देख लड़की ये दिसम्बर का महीना है
और तेरे प्रेमी की आँखे सूनी हो चली है
तेरे इंतज़ार में
देख लड़की जा और जाके सजा दे
अपने प्रेमी की सूनी आँखों में प्रेम के सितारे
और हांसिल कर ले अपने मुरादों के दिन
देख लड़की कहीं देर न हो जाये
कि दिसम्बर का ये आखिरी हफ्ता है।
 --सुधीर मौर्य 

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 26 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सुधीर मौर्य की कविता में 'रात की तन्हाई में, अपनी सांवली गुदाज़ उँगलियों से, अपने कमर के इजारबंद खोल के' पंक्तियों पर मुझे घोर आपत्ति है. आगे से ऐसी अश्लील कविताएँ प्रकाशित न की जाएं तो बेहतर होगा.

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