लड़की गिनती है
अपने सेनेटरी नैपकिन पे वो धब्बे
जो उसकी रोमिल योनि से निकले रक्त से बने है
और उसके आधार पे वो,
उतनी ही लाईन की लिखती है कविता
लड़की पुकारती है
अपनी मां तुल्य को बेबी
और उसकी देह के
अवयवों की संख्या के आधार पे
लिखती है एक नंगी कविता
लड़की लिखती है एक कविता
और बताती है उसमे उसने,
कितनी कोशिशो से बचाया है
उतरने से अपना पेटीकोट एक दारोगा के हाथ से
लड़की नहीं लिखती वो कविता
जिसमे नक्सलियों की बारूद से
मर जाते है सी आर पी एफ के जवान
लड़की नहीं लिखती
कफ़न में लिपटे
सरहद के सैनिक पे कविता
लड़की नहीं लिखती अपनी कविता में
जे एन यू में देश को गाली देने वालो को देशद्रोही
लड़की लिखती है कविता
देशद्रोहियो के समर्थन में
पुरस्कार लौटाने वालो के हाथ
पुरस्कार लेने के लिए।
--सुधीर मौर्य
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