देख लड़की !
यूँ इनबॉक्स में
प्रेम मुकम्मल नहीं
होता
इसके लिए मिलना पड़ता
है
मोतीझील की किसी सर्द
शाम में
इसके लिए जाना पड़ता
है
हाथो में हाथ पकडे
जे के टेम्पल के परिसर
खाने पड़ते है
पानी के बताशे
एक - दूसरे के दोने
से उठाकर
और साफ करना होता है
एक दूसरे के कपड़ो पे
छलके नमकीन पानी को
अपने रूमाल से
प्रेम सिर्फ संवाद
अदायगी नहीं
प्रेम पाने के लिए
जाना होता है पूरे
दिन के लिए
कालेज का बंक मार के
और एक - दूसरे को देखते
हुए
देखना होता है चिड़ियाघर
का हर जीव
प्रेम पाने के लिए
प्रेम में तो हारना
होता है
अपने जी की हर लगी
को
ओ लड़की !
-- सुधीर मौर्य
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-09-2015) को "हिंदी में लिखना हुआ आसान" (चर्चा अंक-2114) (चर्चा अंक-2109) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार सर।
Deleteऔर एक - दूसरे को देखते हुए
ReplyDeleteदेखना होता है चिड़ियाघर का हर जीव .
सच्चाई बयाँ कर दी. सुंदर रचना.
बहुत धन्यवाद रचना जी।
Deleteक्या बात है...प्रेम आभासी कहां होता है।
ReplyDeleteबहुत आभार रश्मि जी
DeleteVery Nice , good sharing
ReplyDeleteremembering Kanpur places .
Thanxx
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआभार सर।
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