Sunday, 2 August 2015

फ्रेंडशिप बेंड - सुधीर मौर्य

लांघ कर अपनी अटारी की 
मुंडेर
मेरी अटारी पे
आके
उसने बांधा था
मेरी कलाई पे
लजाते - सकुचाते
फ्रेंडशिप बेंड
जिसका रंग था
राजहंस के पंखो जेसा।

बेंड तो बेंड था
वक़्त के साथ
टूट कर बिखर गया।
लेकिन उसका उजलापन
अब भी मेरी रातों में
चांदनी बिखेरता है
मेरी कलाई पर
तेरी अँगुलियों का लम्स
अब भी महकता है।
में जब भी देखता हूँ
अपनी कलाई
ऐ मेरे
बिछड़े दोस्त मुझे तेरी
दोस्ती
याद आती है।
--सुधीर मौर्य

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