ओ ! प्रियतमे
हमारी जिन्दगी का
सब से खूबसूरत पल
हमारे इंतजार में
बेकरार है वहां
जहाँ पे
फलक और जमी
आलिंगनबद्ध
होते हैं।
फ़लक़ - जमीं का
मिलन
कोई मारिच्का नहीं है
वह तो
शास्वत सत्य है
जिन्हें हम
दूर की नज़र से
देख सकते हैं
किन्तु नजदीक से नहीं।
क्यों?
क्योंकि यह मिलन
अदेहिक है,
रूहों का है।
अरे ! प्रियतमे
न सही देहिक
हम आत्माओ से मिले है
जिसे
दुनिया देख नहीं सकती।
सुंदर ! देख ले कहीं मरीचिका तो सही नहीं होता है :)
ReplyDeleteji sahi kaha aapne me sahi karta hu..dhanywad
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (22-03-2014) को "दर्द की बस्ती" :चर्चा मंच :चर्चा अंक: 1559 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ji sir, bahut dhanywad
Deleteबहुत सुंदर सुधीर भाई धन्यवाद व स्वागत हैं ।
ReplyDeleteनवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ अतिथि-यज्ञ ~ ) - { Inspiring stories part - 2 }
बीता प्रकाशन -: होली गीत - { रंगों का महत्व }
dhanywad..
Deleteआत्माओं का मिलन ही तो सच्चा मिलन है ... फिर कोई देखे न देखे ...
ReplyDeleteभावमय रचना ..
bahut aabhar..
Deletebahut shukriya
ReplyDeleteआसान शब्दों में प्यार झलकाती बहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना...!!
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