Thursday 13 September 2012

रिंकल का दर्द...



ऐ विधाता !
ओ विधाता !

क्यों लिख दिए
इतने दुःख
भाग्य में मेरे...
मेरी आंहें
मेरी चीखें
नहीं पहुंची क्या
कान में तेरे...

कब ख़त्म होगी
रात गहरी
है कहाँ सवेरा...
सूर्य भी अब
नहीं देखता
मलिन मुख मेरा...

चाँद सी सूरत मेरी
चाँद को भाई नहीं
चांदनी से लगी आग
जो बुझी बुझाई नहीं...

चांदनी की आंच ने
चेहरा मेरा
झुलसा दिया
सय्याद के जाल में
हवाओं ने उलझा दिया...

माँ-बहन
भाई-पिता
सबसे अब
दूर हूँ
हैवानियत की
भेंट चढ़ गयी
कितनी में 
मजबूर हूँ...

पर सास तक
एक आस है
कोई होगा इस जगत में
मेरा वीर भाई भी
या कोई शहजादा होगा
जो लेता होगा 
अंगडाई भी
जिनके कर्मो से होगी
फिर मेरी रिहाई भी...

ऐ विधाता !
ओ विधाता !

(Pain of Masoom Rinkle)
By
Sudheer Maurya 'Sudheer'
 

3 comments:

  1. http://vyakhyaa.blogspot.in/2012/09/blog-post_16.html

    ReplyDelete
  2. बहुत कोमल एवं मार्मिक अभिव्यक्ति....

    सादर
    अनु

    ReplyDelete