कलम से..
Gazal,Nazm,Stories & Article by Sudheer Maurya
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Monday, 30 April 2012
Raqib sang muskra raha tha
वो दिल पे नश्तर चला रहा था
रकीब संग मुस्करा रहा था
गिरा का आँचल बदन से अपने
वो हमसे दमन बचा रहा था
पहन के जोड़ा सितारे वाला
अहद वफ़ा का भुला रहा था
जफा निभाता रहा जो हरदम
वफ़ा के किस्से सुना रहा था
जो कम हुई रौशनी शमा की
'सुधीर' के ख़त जला रहा था
सुधीर मौर्या 'सुधीर'
09699787634
1 comment:
amrendra "amar"
26 June 2012 at 21:30
बहुत ही सुन्दर रचना..
:-)
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बहुत ही सुन्दर रचना..
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