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Wednesday, 5 August 2015

अफ़साने की नायिका - सुधीर मौर्य


मै बनता हूँ
नायिका
हर अफ़साने में तुम्हे
समेट
लेना चाहता हूँ
तुम्हारे वज़ूद की खुश्बू
पा लेना चाहता हूँ
तुम्हारी
साँसों की गरमी
तुम्हारे
होठों की नरमी
डूबना चाहता हूँ
मेरे काल्पनिक स्पर्श से
उट्ठे तुम्हारी नाभि के वलय में 

ओ मेरे अफ़साने की नायिका
मै प्यार करता हूँ
अफ़साने में तुम्हे
क्योंकि
प्रेयसी कोई ओर है
हक़ीक़त में मेरी।
--सुधीर मौर्य 


3 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.08.2015) को "बेटी है समाज की धरोहर"(चर्चा अंक-2060) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

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