Pages

Wednesday, 4 July 2012

उसर में कास फूल रही थी (२)


पड़ने में...
होशियार था वो...
पर वो पढाई कर न सका..
हाय गरीबी के चक्कर में 
पूरे आरमान कर न सका...

हँसते-इठलाते साथ में थे
वो दोनों बचपन के 
खेलों में...
वो गरीब था झोपडी का..
वो रहती थी महलों में....

वो आज डाक्टर क्लिनिक में
वो खेत जोतता हल से था
वो स्नेह भुलाने वाली थी
वो अनजान इस चल से था...

वो एक मेडिको लड़के से
जब शादी कर 
उसको भूल रही थी...
तब उसके मन मरुस्थल के
उसर में कास फूल रही थी.....


सुधीर मौर्य 'सुधीर'

'हो न हो' से....
  

2 comments:

  1. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद

    ReplyDelete
  2. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

    ReplyDelete