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Monday 4 January 2021

ऐतहासिक उपन्यास हम्मीर हठ से


 'मरहठ्ठी बेगम तुम क्या खुशनसीबी और वक़्त की फेर की बात कर रही हो जबकि सच तो ये है कि आज सारी ज़मीन पर कहीं भी कोई भी तलवारे अलाई का मुकाबला करने की हिम्मत और हिक़ामत नहीं कर सकता।'

कह कर सुल्तान अलाउद्दीन खिलज़ी हंस पड़ा। दम्भी और वहशी हंसी। देवी छिताई कुछ क्षण उसकी वाहिशयानी हंसी देखती रही और पैतरा बदल के वही ज़मीन पर दोनों घुटने मोड़ के उन पर अपने स्थूल नितम्बो के सहारे बैठते हुए किसी बिफरी हुई शेरनी की भांति दहाड़ते हुए बोली 'हाँ सुलतान ये तुम्हारी और तुम्हारी तलवारे अलाई दोनों की खुशकिस्मती है और वक़्त का फेर है कि तुम्हारा सामना चन्द्रगुप्त मौर्य से नहीं हुआ। जब उनके सामने वास्तविक सिकंदर न टिक सका तो खुद को सिकंदर सानी नाम से तसल्ली देने वाले तुम कैसे टिक पाते।'
'अच्छा हुआ सुल्ताने हिन्द तुम्हारा सामना समय की चाल के सौभाग्य से 'समुद्रगुप्त और १६ वर्ष की आयु में हुणों को खदेड़ने वाले स्कंदगुप्त से नहीं हुआ। सच तुम्हारी किस्मत बाबुलंद है जो विक्रमादित्य, हर्षवर्धन और पुलिकेशन दवतीय से तुम्हारा सामना नहीं हुआ नहीं तो तुम्हारी तलवारे अलाई को चूर्ण में परिवर्तित कर दिया गया होता। तुम्हारी किस्मत का सच में रोशन हे मेरे पतिदेव जो तुम्हारे सामने बाप्पा रावल और नागभट्ट नहीं आये नहीं तो....।'
Sudheer Maurya 'Sudheer'